"जिस विशाल नेचर ने मनुष्य जगत् में अद्वितीय देव-शक्तियों से विशिष्ट देवात्मा को इसलिए प्रगट किया, ताकि जैसे उसके निर्जीव सूर्य की ज्योति और तेज से हमारी पृथ्वी के सब प्रकार के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े जीव-धारियों के जीवित शरीरों की जहां तक उसके अपने नियमानुसार रक्षा वा उन्नति हो सकती है, तथा वह रक्षा और उन्नति हो रही है, वैसे ही जीवित जगत् के सूर्य देवात्मा की देव-ज्योति और उनके देव-तेज के द्वारा मुख्यतः मनुष्य जगत् और गौणत: उस से नीचे के जगतों की जीवनी शक्तियों की भी उसके नियमानुसार जहां जहां तक रक्षा वा उन्नति सम्भव है, वह रक्षा और उन्नति हो; और वह उस के उस विकास कार्य्य को उन तरफ़ों में और आगे बढ़ाएं, कि जिन तरफ़ों में उसका और आगे बढ़ना देव-शक्तियों से विहीन मनुष्य जगत् के आत्माओं के द्वारा सम्भव न था; और वह अपनी इन देव-शक्तियों को प्राप्त होकर उन के देव प्रभाओं के द्वारा उस के नाना दिशाओं से बंद पड़े विकास मार्ग के खोलने और उसके बढ़ाने वा प्रशस्त करने का हेतु हों “
यही नहीं कि अँधेरों को दर-ब-दर कर दे।
चराग़ वो है जो आँधी को बेअसर कर दे।।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के हिस्से में है ये फ़न अब तक।
सहर को शाम करे, शाम को सहर कर दे।।
हयात सबको मिली है सँवारने के लिये।
ये और बात है कोई इधर-उधर कर दे।।
We only live once. But if we live it in the right way, then only once is enough.
बेशक हम ज़िन्दगी एक बार ही जीते हैं। किन्तु यदि इसे सही तरीक़े से जिया जाए, तो एक बार जीना भी पर्याप्त है।
Every morning we select what clothes to wear.
But we rarely select what thoughts to wear on our minds.
Dresses impress others,
Thoughts impress us.
एक दरवाज़ा है वो दीवार उसके इर्द गिर्द,
इस कहानी के सभी किरदार उसके इर्द
हर ख़बर का वो है मरकज़ सनसनी वो खलबली वो,
छप रहे हैं शह्र के अख़बार उसके इर्द गिर्द,
सरपरस्ती और बेहतर हो नहीं सकती जनाब,
आप हैं सर और मैं दस्तार उसके इर्द गिर्द,
ढूंढ लेती हैं दुकानें जेब जो सबसे हो गर्म,
घूमती है रौनके बाज़ार उसके इर्द गिर्द,
लफ्ज़ सारे कर रहे हैं रूप उसका ही बयान ,
इस video के हैं सभी अशआर उसके इर्द गिर्द,
एक तो पत्थर उछाला जा रहा है ,
उस पे शीशा भी संभाला जा रहा है,
फूल तो मजबूरियों मे खिल रहे हैं ,
बाग़ में काटों को पाला जा रहा हैं,
फैसला आया है बरसों बाद ये ही ,
"फैसले को कल पे टाला जा रहा है,"
अब सुना ऐसे भी साँचे बन रहे हैं
जिनमें कूज़ागर को ढाला जा रहा है,
अब कहाँ कन्धों को कुछ तक़लीफ़ होगी,
बोझ सारा दिल पे डाला जा रहा है,
वो बहुत उकता गया है बन्द रह कर,
चाबियों के पास ताला जा रहा है,
तुम्हें बताऊँ , मुझे पता है
ये ज़िन्दगी तो बस इक जुआ है
तुम्हारा लहज़ा बता रहा है
तुम्हारा रुतबा नया-नया है
अभी-अभी तो ये दिल जला है
अभी-अभी तो धुआँ उठा है
अभी से ओढ़े थकन हो बैठे
अभी सफ़र की ये इब्तिदा है
अभी से दामन छुड़ा रहे हो
अभी तो मैंने फ़क़त छुआ है
मेरी नज़र में ये वस्ल है पर
तेरी नज़र में मुक़ाबला है
अभी है मौक़ा तू सर झुका ले
अभी तो तौबा का दर खुला है
ये बेटी वाला झुका है जितना
कोई शजर क्या कभी झुका है
जहाँ पे *राही* सदी है बैठी
वहीं पे लम्हा कोई गिरा है
इधर झुकीं हैं निगाहें राही
उधर वो चिलमन उठा रहा है
जब से कश्ती में सूराखों की पहचान हुई है।
जंग समंदर से मेरी और भी आसान हुई है।।
ख्याल ए कुफ्र है बेहतर किसी इबादत से।
फिरकापरस्त सियासत का ये सामान हुई है।।
बाग ए जन्नत का कोई फल है मोहब्बत शायद
हर एक आदम से कभी ये खता नादान हुई है
खामोशी से ही वो हर काम कर गुज़रते है।
गुफ़्तगू जब से दो नज़रों के दरम्यान हुई है।
श्लोक गीता का खुदा ने क्या गुनगुनाया कोई।
कहीं मंदिर की घंटियों के संग अज़ान हुई है।।
रहेगा जिक्र -ए- इंक़लाब इंतिखाबों तक
जम्हूरियत भी शातिरों पे मेहरबान हुई है
साहब आस में खोती ये ज़िन्दगी की तलब
मौत खुद पर लगे इल्ज़ाम से हैरान हुई है।।
1- कुफ्र-नास्तिकता
2- फिरकापरस्त-साम्प्रदायिक
3-इंतिखाब-चुनाव
जहान-ए-ज़हर मेरे जिस्म पर कमाल कर ना सका
ये तेरी मोहब्बत मेरी रूह पर कमाल कर गई
The beauty of the bird !!!
Marvellous piece of work. Wonderful engineering यह ना तो पेंटिंग है, ना ही मूर्ति है, पर vdo देखते ही आप इंजिनियरो की दाद दोगे! 👌👌👌
Hats off to the birds lovers...
ਚੀਨ ਦੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਬੈਗ ਦੇ ਆਯਾਤ ਨੂੰ ਬੈਨ ਕਰਨ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿੱਚ ਪਲਾਸਟਿਕ ਬੈਗ ਦੇ ਇਸਤੇਮਾਲ ਉੱਤੇ ਰੋਕ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਚਰਚਾ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਸਾਡੇ ਲੰਚ ਬਾਕਸ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਬੈਗ, ਖਾਣ ਦੇ ਕਨਟੇਨਰ, ਪਰਦੇ, ਫ਼ਰਨੀਚਰ, ਚਸ਼ਮੇ, ਪਾਣੀ ਦੀ ਬੋਤਲ, ਗਲਾਸ ਆਦਿ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀਆਂ ਹੀ ਬਣਿਆਂ ਹੋਈ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ।Plastic types dangerous health
ਪਲਾਸਟਿਕ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਿੱਸਾ ਬਣ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ ਪਰ ਘੱਟ ਲੋਕ ਜਾਣਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਲਾਸਟਿਕ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਅਸਰ ਵੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਦੱਸ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ, ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿੱਚ 7 ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਲਾਸਟਿਕ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਸਾਰੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕੋਡ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।Plastic types dangerous health
ਜਾਣੋ ਕਿਹੜਾ ਪਲਾਸਟਿਕ ਹੈ ਸਭ ਤੋਂ ਖ਼ਤਰਨਾਕ —– ਉਂਜ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਅਤੇ ਨੁਕਸਾਨਦਾਇਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਸਾਰੇ ਕੋਡ ਵਾਲੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦਾ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾਪਣ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਬਿਹਤਰ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿ ਪਲਾਸਟਿਕ ਤੋਂ ਬਣਿਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰੋ ਪਰ ਜੇਕਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨਾ ਤੁਹਾਡੀ ਮਜਬੂਰੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਅਜਿਹੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀ ਵਰਤੋ ਕਰੋ, ਜੋ ਥੋੜ੍ਹਾ ਘੱਟ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਆਮ ਤੌਰ ਉੱਤੇ 2, 4 ਅਤੇ 5 ਕੋਡ ਵਾਲੇ ਪਲਾਸਟਿਕ 1, 3, 6 ਅਤੇ 7 ਕੋਡ ਵਾਲੇ ਪਲਾਸਟਿਕ ਨਾਲੋਂ ਬਿਹਤਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ।Plastic types dangerous health
1 ਕੋਡ ਵਾਲੀ ਪਲਾਸਟਿਕ — 1 ਕੋਡ ਵਾਲੀ ਪਲਾਸਟਿਕ ਵਿੱਚ Polyethylene teraphthalite ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਪਾਲਿਸਟਰ ਦਾ ਕੱਪੜਾ, ਬੋਤਲ, ਜੂਸ, ਮਾਉਥਵਾਸ਼, ਜੈਮ, ਪਾਣੀ ਆਦਿ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਬੋਤਲ ਇਸ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਬਣਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਨੁਕਸਾਨ ਇਹ ਹਨ। Polyethylene teraphthalite ਵਿੱਚ ਲੀਚ ਐਂਟੀ-ਮੋਨੀ ਟ੍ਰਾਈਆਕਸਾਈਡ ਅਤੇ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਦੋਨੋਂ ਹੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਐਂਟੀ-ਮੋਨੀ ਟ੍ਰਾਈਆਕਸਾਈਡ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਜਿਹਾ ਗੰਭੀਰ ਰੋਗ ਹੋਣ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਤੋਂ ਸਕਿਨ ਸਬੰਧੀ ਸਮੱਸਿਆ, ਮਾਹਵਾਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰੈਗਨੈਂਸੀ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ।Plastic types dangerous health
2 ਕੋਡ ਵਾਲੀ ਪਲਾਸਟਿਕ — ਕੋਡ 2 ਪਲਾਸਟਿਕ ਵਿੱਚ ਹਾਈ Density polyethylene ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਦੁੱਧ, ਜੂਸ, ਸ਼ੈਂਪੂ, ਡਿਟਰਜੈਂਟ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਦਵਾਈਆਂ ਦੀ ਬੋਤਲਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਡ 2 ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀ ਬਣੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਹਾਲਾਂਕਿ ਇਸ ਪਲਾਸਟਿਕ ਨੂੰ ਘੱਟ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਨੁਕਸਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।Plastic types dangerous health
3 ਕੋਡ ਵਾਲੀ ਪਲਾਸਟਿਕ — ਇਸ ਪਲਾਸਟਿਕ ਵਿੱਚ polyvi
Save the water and be the water bc water does not resist. Water flows. When you plunge your hand into it, all you feel is a caress. Water is not a solid wall, it will not stop you. But water always goes where it wants to go, and nothing in the end can stand against it. Water is patient. Dripping water wears away a stone. Remember that, my child. Remember you are half water. If you can't go through an obstacle, go around it. Water does.
अब वक़्त नहीं रहा।।।।
आँखे मूंदकर गुज़र जाने का अब वक़्त नहीं रहा,
ज़ुल्म को सहने का अब वक़्त नहीं रहा।
हो अगर इंसान तुम तो होने का सबूत भी दो
चाय की चुस्कियों के साथ अख़बार पढ़ने का अब वक़्त नहीं रहा।
है वो हैवान तो दो उन्हें उनकी हैवानियत की सजा
वक़्त जाया ना करो मुकदमा चलाने का अब वक़्त नहीं रहा।
तुम्हारी ये ख़ामोशी एक दिन छीन न ले तुम्हारी भी खुशिया
तुम्हे बोलना पड़ेगा चुप रहने का अब वक़्त नहीं रहा ।।
एक दिन लड़कियों के एक स्कूल के क्लास में किसी का पेन खो गया।टीचर सभी लड़कियों के बैग चेक करने लगीं।लेकिन उन में से एक लड़की किसी प्रकार अपना बैग टीचर को बैग चेक करने नहीं दे रही थी।टीचर गुस्से में आ गयी क्योंकि उन्हें लगा कि पेन अवश्य इसीके बैग में है।लड़की ज़मीन पर गिर गई लेकिन बैग टीचर को नहीं दे रही थी।इतने में स्कूल की प्रिंसिपल आ गईं।उन्होंने टीचर को रोका और पूछने लगीं की क्या हो रहा है।सारी बात समझकर उन्होंने लड़की को शर्मिंदगी से बचाने के लिए उसे लेकर अपने चैम्बर में ले गईं।वहां उसने अपना बैग खोलकर दिखाया।उसके बैग में लड़कियों द्वारा फेंके हुए खाने थे जो वह चुपचाप उठा लेती थी।बहुत पूछने पर बताया कि वह इसे अपने माँ बाप के लिए ले जाती है जिससे वे भूख से न मर जाएं।टीचर ने उस बच्ची को गले लगा लिया।
यह एक अरबी कहानी है और इस पर जो वीडियो बना उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरष्कृत किया गया।
बच्चों को एक सीख लेनी चाहिए की अन्न की क्या कीमत होती है और अपने देश में भी लाखों लोगों को दो वक्त का भोजन नहीं मिलता।
What a touching story!
हरिवंशराय बच्चन की लिखी यह कविता
ना दिवाली होती, और ना पठाखे बजते
ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता....
…….काश कोई मजहब ना होता....
ना अर्ध देते, ना स्नान होता
ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता
जब भी प्यास लगती, नदीओं का पानी पीते
पेड़ों की छाव होती, नदीओं का गर्जन होता
ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों
का नाटक होता
ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का
फाटक होता
ना कोई झुठा काजी होता, ना लफंगा साधु होता
ईन्सानीयत के दरबार मे, सबका भला होता
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,
…….काश कोई धर्म ना होता.....
…….काश कोई मजहब ना होता....
कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता
कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना
होता
कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता
किसी के दर्द से कोई बेखबर ना होता
ना ही गीता होती , और ना कुरान होती,
ना ही अल्लाह होता, ना भगवान होता
तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता.
ना मैं हिन्दू होता, ना तू भी मुसलमान होता
तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता।
जिँदगी की पहली Teacher माँ,
जिँदगी की पहली Friend माँ,
Jindagi भी माँ क्योँकि,
Zindagi देने वाली भी माँ.
आज दीपावली है ।।
ओ नेचर !
ओ मेरे देव !
भौतिक जगत, बनस्पति जगत , पशु जगत एवं मानव जगत
मेँ तेरा किन शब्दो में धन्यवाद करूँ ? ,,
मेँ ---पतझड़ों के बाद -----बसन्त पार कर चुका हूँ । इतने लंबे समय में मैने चारो जगतो से अनगिनत उपकार पाये हैं । सर्व प्रथम जन्मदाता माँ से मैने अपनी अबोध असहाय अवस्था में जो उपकार पाये हैं उनका तो में ब्यान ही नही कर सकता हूँ । पिता का साया भाई बहनों का प्यार। सहायकों की सेवाएं । सूर्य का प्रकाश , गुरु जनों की पढ़ाई । कितना अन्न जल फल मेवे मिठाई आदि का सेवन गाय भैंसों का दूध भेड़ो की ऊन से बने गर्म कपड़े, मकानों पार्को सड़कों वाहनों , डॉक्टरों की सेवाएं प्राप्त की है जो याद भी नही है। मैने जीवन में पाया अधिक है और प्रतिउपकार कम किया है । इतनी असंख्यो सेवाये पाकर भी में स्वार्थी अधिक रहा हूँ । कितना झूठ बोला है कितनो को दुःख पहुँचाया है कितने गलत कार्य किये है और ऐसा करके भी मेँ अपने को ठीक और नेक समझता रहा हूँ और अब भी समझता हूँ । ---- से परोपकार के कार्य करके भी अभी -----वर्षो के गलत कर्मो की मैल को धो सकने में असमर्थ हूँ । जीवन में घोर अंधकार है । वह दीपावली के सैंकड़ों दीपक भी जलाऊँ तो जीवन का अन्धकार दूर नही हो सकता है ।। अगर मुझे भगवान देवात्मा का दर ना मिलता तो जीवन में न जाने इतना कूड़ा करकट भर जाता । आज मै अपने को करोड़ो भले लोगो से सुरक्षित और सौभाग्यवान समझता हूँ । मानव जगत की अवस्था देखता हूँ तो कष्ट होता है पशु जगत बनस्पति जगत और भौतिक जगत को देखता हूँ तो सुंदर लगता है ।।
भगवान के दर पर आकर इतना भला हुआ है कि मैं अत्यधिक ख़ुशी अनुभव कर रहा हूँ अपने मानव जीवन को अधिकतर सफल भी कर लिया है परंतु भगवान देवात्मा की रौशनी में नजर आता है कि। मैं गीत तेरे क्या गाँउ और गाकर किसे सुनाऊँ। मेरा कंठ कठोर बड़ा है मेरा सुर भी नही सुरीला ।। तेरी गांउँ मेँ कैसे महिमा मेरा दिल है बड़ा हठीला ।। मेँ गीत तेरे
जीवन का उच्च लक्ष्य प्रकट हो गया |
मेरे भगवन ! जैसे सूर्य की धूप में प्रवेश करते ही जाड़ा भाग जाता है, तथा शरीर में गर्मी एवं प्राण संचार हो जाता है, उसी प्रकार मैंने आपकी सक्खर (पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त का एक नगर) में वर्तमानता को अपने लिए अनुभव किया है | मेरा आध्यात्मिक-ठण्डापन दूर होता जा रहा है, और मैं चाहूँ या न चाहूँ, मेरे भीतर गर्मी और ताकत आ रही है | आपने हमें बारम्बार अदभुत मानसिक एवं आध्यात्मिक-ज्योति प्रदान करने की करुणा भी की है | भगवन ! मुझे याद है कि किस प्रकार आपने 14 नवम्बर को हमारी दृष्टि को जीवन के उस नीच लक्ष्य और पाश्विक-स्तर से ऊंचा उठाने की कृपा की है कि जिसमे साधारणत: हमारा जीवन व्यतीत होता है | आपने दृष्टांत देकर जो ज्योति प्रदान की, उस ज्योति में अब मैं देख रहा हूँ कि यदि कोई मनुष्य पाप न करे, परन्तु उसका कोई उच्च लक्ष्य भी न हो, तो उसकी अवस्था एक कव्वे से बेहतर नहीं है, क्योंकि जैसे भूख कव्वे को घोंसला छोड़ने और आहार की खोज में निकलने के लिए परिचालित करती है, और अपनी भूख़ को निवारण करने के पश्चात जैसे वह फिर घोसले में आकर सो जाता है, उसी प्रकार शारीरिक आवश्यकताएं मनुष्य को अपने घर से बाहर निकल कर किसी काम पर जाने तथा सारे दिन के परिश्रम के बाद तथा अनेक बार नीच-कर्म करने के बाद, अपने घर वापिस आकर आराम करने तथा सो जाने के लिए परिचालित करती हैं | कव्वा और मनुष्य दोनों ही अपने शारीरिक-जीवन के लिए भागे-भागे फिरते हैं | दोनों में अन्तर यह है कि जब दोनों मरेंगे तो कव्वा मनुष्य से यह कह सकेगा कि तुमने धन कमाने तथा जोड़ने में जो अनेक बुरे कर्म किये हैं, वह मैंने नहीं किये | आह ! वह मनुष्य जो अपने लक्ष्य में कव्वे के स्तर से ऊंचा नहीं उठता, अत्यन्त कृपा-पात्र है | मेरे भगवन ! मैंने उस समय अपने आपको इतना नीचा और क्षुद्र अनुभव किया कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता | उससे अगले दिनों में आपके उपदेशों ने मुझे जो कुछ अनुभव कराया है, वह यह है :—
(1) मैंने अनुभव किया है कि आपके भीतर मिथ्या धर्म मतों की मिथ्या शिक्षा और झूठे विश्वासों के लिए अत्यंत गहरी घृणा वर्तमान है | आपके शक्तिशाली, जीवन्त और गहरे उपदेश अब भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं तथा मुझे ज्योति और बल से भर रहे हैं | मैं उस भव्य सच्चाई को, जो मुझ पर तथा अन्य जनों पर बड़े प्रकाशमान ढंग से अंकित की