26/02/2021
मोन तावङ
तिब्बत देश से दक्षिण की ओर स्थित भूमि को दक्षिण मोन से जाना जाता हैं और भारत के उत्तर -- पूर्व की अोर स्थित पवित्र स्थल मोन के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में मोन का क्षेत्रफल बहुत ही विशाल था। जिसके अन्तर्गत भुटान,तावङ , बोमदिला, दिरंग,खालगतें इत्यादि सभी की मान्यता प्राप्त थी । लेकिन आजकल भुटान को मोन से नही जाना जाता। सभी मोन क्षेत्र के निवासियों द्वारा बौद्धधर्म को प्राथमिकता प्रदान है। यह अपने पुर्वजों से प्राप्त हुआ एक अमूल्य रत्न के रूप में स्वीकार है।
मोन तावड़ - आज इस विशाल विश्व मॆं प्राकृतिक सौन्दर्य पर गोर किया जाए तो तावङ का नाम अवश्य ही गीने जायेंगेི। यह मैं केवल अपने मातृभूमि होने के कारण नही कह रहा हूँ। अपितु वास्तव में ही तावङ एक मनमोहक एवं अाकर्षक हैं। प्राकृतिक सुन्दरता की दृष्टि से हजारों पर्यटक इस पवित्र स्थल की एक जलक पाने हेतु दूर दूर से आकर अपने जीवन में एक अनमोल छाप छोड़ जाते हैं। लगभग सभी पर्यटकों के ह्रदय में कोई न कोई आतुर अभिलाषा होता है कि वह इस दिव्य भूमि के दर्शन पाकर अपने जीवन काल में एक अनोखा अजर अमर स्मारक बनायें। तावङ चारों अोर से बडे़ बड़े पहाड़ों से घिरी हुई हैं। मानो बलडुये रत्न के द्रव्य से देवताओं द्वारा निर्मित किये गए हों। ऐसी विचित्र दृश्य मिलकर देखने को सभी धन्य हो जाते हैं, और यहाँ हजारों लाखों प्रकार के अनेक पेड़-पौधे पाये जातें हैं। आज कल पूरे विश्व में दूषित वातावरण होने के कारण सभी लोग परेशान हैं, नए नए रोग उत्पन्न हो रहें हैं। इसके प्रभाव से सभी प्राणी शिकार बन चुके हैं। ऐसी दुर्अवस्था पर वृक्ष एक वरदान से कम नहीं, अपितु अमृत की भाँति काम करते हैं। हमारे अनगिनत वृक्ष अन्य लोगों पर भी प्रेरणा प्रदान करते हैं और जागरुग होने के संदेश भी देते हैं। पूरे दुनियाँ भर के लोग दूषित परिवेश से चिन्तित हैं। इसी वातावरण के बीच हम मोनपावासी बिना चिन्ता किये अपने जीवन का सुखपूर्वक यापन करते हैं। इतना ही नहीं हमारें यहाँ औषधि निर्माण करने हेतु जडी-बूटियाँ बहुत अधिक संख्या में पायें जातें हैं। इसलिए मैं सोचता हूँ कि मोन को औषधियों का नगर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। वृक्ष अधिक मात्रा में होने के कारण वायुमंडल भी दूषित नही हुआ है। मोन तावङ में हम जहाँ भी प्रस्थान करें, सांस ग्रहण करने में कभी कठिनता नही होती। तावङ में जल की समस्या भी बहुत कम है। बिना परिश्रम किये यह प्राप्त हो जाता है। कुल मिलाकर तावङ का वातावरण, प्रकृति, जल, वायु, स्थल आदि हमारे अनुकूल है। इससे सदा अनुकूल रहने हेतु हम मोनपा वासियों को प्रयत्नशील होना अनिवार्य हैं।
कृषि ---- मोन के ८०% लोग अपने सजीव कृषि पर आश्रित हैं और अन्य २०% लोग अध्यापक, नेता, मन्त्री, डॉक्टर, सैनिक, पुलिस इत्यादि नौकरियों पर निर्भर हैं। कुल मिलाकर हमारा मोन एक कृषि भूमि है।
हमारे मोन तावङ में अन्न उपजाऊ का उपयुक्त समय मार्च से अक्टूबर तक माना जाता है, यानि नौ महीने तक कृषि कार्य करना सबसे अच्छा मानते हैं। मार्च के प्रारम्भ से किसान कृषि कार्य में उत्साह और उमंग के साथ जुट जाते हैं। वे तरह तरह के लोक गीत गाते हुए, सभी परस्पर हाथ से हाथ मिलाकर सुख दुख आदि किसी भी प्रकार की स्थिति हो वे साथ मिलकर आगे बढ़ने की कसम खाते हुए, समस्त कृषिकार्यों को मन लगाकर लगन के साथ कार्य करते हैं। यहाँ विशेषकर जौ, बैंगन,आलू, मकई, मिर्ची, बंदगोभी, फूलगोभी आदि लगाये जाते हैं। जिनके फल तीन महीने के उपरान्त प्राप्त हो जाते हैं। तद् पश्चात पुनः बाजरा, गेहुँ, चावल इत्यादि बोते हैं। इसी प्रकार पूरे नौ महीने दिन रात खेतों का कार्य करते हुए चरम सीमा तक पहुँच जाता है।
बौद्ध धर्म--- हमारे मोन क्षेत्र के इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालें तो सदियों से ही हम बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं । इसका सबूत स्पष्ट रुप से मिल जाता है, उदाहरण के तौर पर तीर्थ स्थल। इसे एक सबसे अच्छे और सरल प्रमाण के रुप में देख सकते हैं। वैसे तो मोन तावङ तीर्थस्थलों से ओत प्रोत हैं। यहाँ कई धर्म गुरुजन पधार कर बौद्ध के महत्व को ध्यान देते हुए दुसरों के समक्ष प्रचार-प्रसार के शुभकार्य को जोर-शोर से करते थे। जिसके फलस्वरुप यह एक पवित्र धर्म भूमि के रुप में तबदील होने में सफल रहा । इनमें थाड़गाफेल, भगजंग, तगछड़ , खोमतेन,तावड़ स्थानों पर मठ इत्यादि प्रमुख हैं।
थाड़गाफेल, तगछड़ और भगजंग तीनों स्थान गुरु पद्मसम्भव से सम्बधिंत हैं। जिन्होंने बौद्ध धर्म में वज्रयान धर्म को प्रचार कराने में बहुत ज्यादा योगदान दिया। तावङ मठ के स्थापक मेरग लामा लोद्रे ज्ञछो और पाचवें दलाई लामा जी हैं। इन दोनों महापुरुषों के दूरदर्शियों के कारण तावङ मठ की स्थापना सन् १६८० के आस पास में हुई। इसी से हमारे मोन क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म को मान्यता प्राप्त होने का दावा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई धर्म गुरुजनों ने मोन भूमि को एक धार्मिक स्थल में परिवर्तित करने का सहयोग दिया। आज भी मोन तावङ के निवासी केवल बौद्ध धर्म का ही अनुचर करते हैं। उनकी दिनचर्यों में मन्त्र जपना,पूजा-पाठ करना, मठ और स्थूप आदि का परिक्रमा करना, दान देना आदि विशेष रूप से होता है। लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि हमारे मोन क्षेत्र में भोटी भाषा जानने वाले गिने चुने में ही सीमित हैं। जिसके कारण बौद्ध दर्शन के गन्थों पर चिन्तन करने में असमर्थ हैं। आज बौद्ध धर्म समझने हेतु भोटी भाषा को जाने बिना ओर कोई दुसरा विकल्प नहीं है। भोटी भाषा के महत्व को दर्शाते हुए मैं बौद्ध धर्म के अनुयायियों से इस विषय की शुभ राह पर अग्रसर होने के निवेदन के साथ अपने इस निबंध को विराम देना चाहूँगा।