Mon Darpan

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བཅོམ་ལྡན་འདས། རྫོགས་པའི་སངས་རྒྱས་ལུམ་བུ་ནི་ཡི་སྐྱེད་ཚལ་དུ།། ལྷ་མོ་སྒྱུ་འཕྲུལ་མ་ཡི་མངལ་ནས་འཁྲུངས་བའི་ཚེ།། རྒྱ་མཚོ་གོས་ཅན་...
30/05/2022

བཅོམ་ལྡན་འདས།

རྫོགས་པའི་སངས་རྒྱས་ལུམ་བུ་ནི་ཡི་སྐྱེད་ཚལ་དུ།།
ལྷ་མོ་སྒྱུ་འཕྲུལ་མ་ཡི་མངལ་ནས་འཁྲུངས་བའི་ཚེ།།
རྒྱ་མཚོ་གོས་ཅན་འདི་རུ་གོམ་པ་བདུན་པོར་ནས།།
ང་ནི་འཇིག་རྟེན་འདི་ན་མཆོག་ཅེས་གསུང་པོ་ཁྱོད་ལ་འདུད།།

མཚན་བཟང་སོ་གཉིས་བརྒྱན་པའི་རབ་མཛེས་གཟུགས་བཟང་བ།།
ཡེ་ཤེས་རྒྱ་མཚོ་འོ་མཚོ་ལས་ཀྱང་རབ་དུ་དཀར།།
ཁྱོད་ཀྱི་གྲགས་པ་སྲིད་གསུམ་ཀུན་ལ་ལྷམ་མེ་བ།།
འཇིག་རྟེན་མཁྱེན་པའི་ཞབས་ལ་སྙིང་ནས་གུས་ཕྱག་འཚལ།།

རི་རབ་ལྷུན་བཞིན་གང་གི་སྐུ་ནི་གཟི་བརྫིད་ཆེ།།
གསུང་དབྱངས་དྲུག་ཅུའི་ལེགས་པར་བརྒྱན་པའི་ཁྱོད་ཀྱི་གསུང་།། སྙིང་རྫེའི་བརླན་པའི་ཐུགས་ནི་རྒྱུན་དུ་གདུལ་བར་དགོངས།།
ཤཱཀྱ་ཐུབ་པའི་སྐུ་གསུང་ཐུགས་ལ་ཕྱག་འཚལ་ལོ།།

ཉོན་མོངས་སྡུག་གསུམ་ལྕགས་ཐག་བཅིངས་པའི་འཁོར་བ་པར།།
ཐར་པའི་ལམ་མཆོག་དམ་ཆོས་ཁོ་ན་བསྟན་པར་མཛད།།
དེ་འདྲའི་མཛད་མཆོག་འདི་ལ་མགྲིན་ཅིག་དབྱངས་ཅིག་ཐོག།
ཀུན་གྱིས་བསྟོད་པའི་མེ་ཏོག་རབ་ཏུ་ཕུལ་པར་མཛད།།

ས་ཀ་ཟླ་བའི་དུས་འདིར་རྫོགས་པའི་སངས་རྒྱས་ནི།།
གདུལ་བྱའི་དོན་དུ་སྐུ་བལྟམས་རྫོགས་སངས་རྒྱས་པ་དང་།།
མྱ་ངན་འདས་པའི་མཛད་མཆོག་གསུམ་དང་ལྡན་པར་བརྟེན།།
ཤིན་ཏུ་རྩ་ཆེན་དུས་ཆེན་ཁྱད་པར་གནས་འདིར་བསུ།།

Nature teaches us the value of life through its calm and steady nature.
29/05/2022

Nature teaches us the value of life through its calm and steady nature.

तवागं का यह अद्भुत दृश्य, कौन नहीं पसन्द करेंगा। हर कोई मुंह से  अनायास ही अद्भुत, अविस्मरणीय, अलौकिक आदि शब्द  निकल जान...
06/02/2022

तवागं का यह अद्भुत दृश्य, कौन नहीं पसन्द करेंगा। हर कोई मुंह से अनायास ही अद्भुत, अविस्मरणीय, अलौकिक आदि शब्द निकल जाना लाजिम है। ऐसा मैं मानता हूं। मैं अपनी मातृभूमि को जब भी देखता सोचता हूँ, तो अपने आपको एक भाग्यशाली पाता हूँ।



20/01/2022
17/01/2022

Beauty of Monyul Tawang.


Name the mini flower if you know the name.   flower
24/12/2021

Name the mini flower if you know the name. flower

Some beautiful pictures of Monyul Tawang. Which gives us a deep  inner satisfaction.       .
23/12/2021

Some beautiful pictures of Monyul Tawang. Which gives us a deep inner satisfaction. .

Jamkhar chorten
28/11/2021

Jamkhar chorten

26/11/2021
Dhamek Stupa (also spelled Dhamekh and Dhamekha, traced to Sanskrit version Dharmarajika Stupa, which can be translated ...
15/11/2021

Dhamek Stupa (also spelled Dhamekh and Dhamekha, traced to Sanskrit version Dharmarajika Stupa, which can be translated as the Stupa of the reign of Dharma) is a massive stupa located at Sarnath, 13 km away from Varanasi in the state of Uttar Pradesh, India.

Zemithang
23/10/2021

Zemithang

Buddha statue in Tawang. Arunachal pradesh.16th 10 2021.
20/10/2021

Buddha statue in Tawang. Arunachal pradesh.
16th 10 2021.

.........  The beautiful view of  .  It is most precious gems of Monyul...             ...........
12/10/2021

......... The beautiful view of . It is most precious gems of Monyul... ...........

मेरा जन्म भूमि, मेरा प्यारा जन्मभूमि।  दसो दिशा है पर्वत-माला, अमृत-जल, सरोवर, नदियाँ,  सरल-सुगम से मिले यहां, मेरा प्या...
04/06/2021

मेरा जन्म भूमि,
मेरा प्यारा जन्मभूमि।

दसो दिशा है पर्वत-माला,
अमृत-जल, सरोवर, नदियाँ,
सरल-सुगम से मिले यहां,
मेरा प्यारा जन्मभूमि।

अद्भुत,अनगिनत, वनस्पतियां भरा,
सर्वत्र निर्मल पवन से सुसज्जित,
यह देव भूमि है- तवांग मेरा,
मेरा प्यारा जन्मभूमि।

इस पावन भू पर,
अरुण देव पधारे प्रतिदिन,
सर्वप्रथम उमंग-उत्साह नई आशा से,
है यह प्यारा जन्मभूमि मेरा।

परी डोलवा संमोआदि काल में 《རྟ་ནག་མཎ་ཌལ་སྒང》तनक मंडलगंङ ( वर्तमान में तवागं मठ स्थान पर) क्षेत्र पर धर्म धवनि प्रचार-प्रस...
26/02/2021

परी डोलवा संमो

आदि काल में 《རྟ་ནག་མཎ་ཌལ་སྒང》तनक मंडलगंङ ( वर्तमान में तवागं मठ स्थान पर) क्षेत्र पर धर्म धवनि प्रचार-प्रसार नहीं हुए थे। उसी समय, उस भूमि पर नरपति कला वङपो और रानी हशङ थे।

एक बार, एक परी ने उस भूमि के नागरिक लोग महा कष्ट भोगते हुए देखकर वह, रानी हशङ को वश में करने हेतु और राजा को धर्म के राह पर अग्रसर करवाने के लिए, पिता श्री { བྲམ་ཟེ་བློ་གྲོས} बाह्मण मति और माता लुंगनक म 「རླུང་ནག་མ」दोनों से एक बेटी (परी) ने जन्म लिया।
एक बार भूपति ने अपने पुरोहित एवं सैनिकों के साथ सर्वश्रेष्ठ कुतिया को लेकर आखेट पर प्रस्थान किया। उन्होंने वन में जाकर सैंतीस मृग को मारा और कुछ ही समय के पश्चात् वह कुतिया (ལྕགས་ཁྲ) जंगल में खो गयी। जिसके कारण सभी दिशाओं पर नृप एवं पूरे परिचारक ढूँढ़ते हुए ईधर-उधर जाने लगे। अन्त में उसी विशाल जंगल में एक छोटी सी कुटिया के सामने कुतिया की पाद छाप देखा, जिसके कारण राजा ने उस छोटी सी गृह के भीतर प्रवेश किया, वह, वहाँ परी डोलवा संमों से मिलते ही प्यार में पड़ जाता है। फलस्वरुप उसी समय उसे अपने रानी बना लेता है।

डोलवा संमों के कृपा से सभी पुरोहित एवं प्रजा धर्म की ओर ध्यान केन्द्रित करने लगे और धर्म के मूल मन्त्र मणि को जपना आदि। लोग केवल धर्म कार्य पर ही लीन रहने लगे। एक दिन राजकुमारी सर्वभद्री (ཀུན་ཏུ་བཟང་མོ) और तीन वर्ष के बाद राजकुमार सर्व कल्याण 【ཀུན་ཏུ་ལེགས】दोनों का जन्म हुुआ।

एकदा दासी जेमरगो ने माता एवं उनके बच्चे मजे से बैठे हुए देखकर रानी हशङ को बता देती है। जिससे दुष्ट हशङ ने उन्हें बहुत ज्यादा कष्ट पहुँचाती है। जैसे हर-रोज अनादर करना, विना दोष से दण्ड देना आदि से वे कष्टदाय जीवन यापन करने पड़ते हैं। अन्त में माता डोलवा संमों दुखित होकर देव लोक में चली जाने के कारण दोनों बच्चे बहुत रोने लगे और शोक से पीड़ित हुए। दुष्ट हशङ ने राजा को पागल जल पिलाकर जेल में डाल दिया जाता है।
इसके पश्चात् दुष्ट हशङ ने दो कसाई भाई को भुलाकर भाई-बहन को जान से मारने के लिए आदेश देती है लेकिन उन कसाई भाईओ ने दो पिल्ला के ह्रदय दुष्ट रानी को देकर भाई-बहन को जान भक्ष दिया। पुनः दो मछुआरा को उन्हें मारने का आदेश दिया, किन्तु उन दोनों ने भी मारा नहीं अपितु उन्हें पूर्व भारत की ओर जाने के लिए सलाह दी।
इसके बाद दोनों राजकुमार और राजकुमारी एक घने वन में अपने कष्टमाय जीवन से जीने लगे, वे दुखित होकर सदा रोते थे। एक ओर राजकुमार को पियास लगने के कारण दुसरी ओर राजकुमारी ने जल ढूढ़ना प्रारम्भ कर दी, परन्तु उस जंगल में पानी का अभव होने से, उसे जल प्राप्त नही होते हैं। ऐसी स्थिति में, माता परी डेलवा संमों ने देखकर अपने दिप्य शक्ति से एक कौआ का रूप धारण करके जिस ओर नीर का स्त्रोत है,उस स्थान को दिखाया। एक बार राजकुमार, एक विषैली सर्प के विष से बेहोश होते समय, माता ने श्वेत साँप का रूप लेकर पूरे विष को निकाल लेता है। फिर एक बार वे दोनों भूख से तड़पते हुए देखकर माता ने एक वानर का रूप धारण करके बहुत अधिक संख्या में फल देने लगे।
किसी एक दिन, दुष्ट हशङ ने वे दोनों जीवित देखकर, नीच कुल के एक वृध्द और एक युवक को भेजकर उन दोनों को मारने का आदेश दिया। इसके पश्चात् नीच कुल के जो युवक था,उसने राजकुमार को विशाल चट्टान से फैक दिया तो माता ने गिध्द का शरीर धारण करके उसे बजाया। इसके बाद पानी के अन्दर फैकी और फिर माता ने एक विशाल मछली के रूप धारण कर नदी के किनारे पर पहुँचाया।
इसके पश्चात् एक तोता ने जिस तरह भविष्यवाणी किया था । उसी प्रकार भाई बहन बिछड़के चीर काल तक भ्रामण करके बेठना पड़ा। राजकुमार सर्व कल्याण पद्मचन 《པདྨ་ཅན》गाँव पहुँचते समय सभी लोग उसे राजा के पद पर अगमन या पद प्रदान करने के लिए स्वागत किया। राजकुमारी सर्व भद्री ने एक गोपालक के झोपड़ी पर भोजन माँगते समय, कुत्ते ने काँट कर तीन महीने तक बीमर रहने लगी।

इसके बाद राजकुमारी भोजन माँगते -माँगते पद्मचन देश के राजमहल पहुँचते वक्त राजा सर्व कल्याण ने महल के भीतर बुलाया तो उसे देखते ही राजकुमारी को पहचान कर दोनो परस्पर गले मिलकर रोते हुए बेहोश हो जाते हैं।

अन्त में दनाव हशङ ने पद्मचन भूमि पर युध्द के लिए पहुँचा तो राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने चालाकी से युध्द करना प्रारम्भ किया, अन्त में राजकुमार ने वाण चलाकर दनाव हशङ को मार गिराया। नौ परत भूमि को खोदकर दनाव के शव को दफनाया गया। इसके पश्चात् पिता राजा जी को जेल से निकाला गया । शीत ऋतु में तनक मंडलगङ भूमि पर तथा ग्रीष्म ऋतु में पद्मचन देश पर हसी खुशी जीवन यापन करने लगे।
{धन्यवाद! साधुवाद! दाशी देलेक!}

मोन तावङ   तिब्बत देश से दक्षिण की ओर स्थित भूमि को दक्षिण मोन से जाना जाता हैं और भारत के उत्तर -- पूर्व की अोर स्थित प...
26/02/2021

मोन तावङ
तिब्बत देश से दक्षिण की ओर स्थित भूमि को दक्षिण मोन से जाना जाता हैं और भारत के उत्तर -- पूर्व की अोर स्थित पवित्र स्थल मोन के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में मोन का क्षेत्रफल बहुत ही विशाल था। जिसके अन्तर्गत भुटान,तावङ , बोमदिला, दिरंग,खालगतें इत्यादि सभी की मान्यता प्राप्त थी । लेकिन आजकल भुटान को मोन से नही जाना जाता। सभी मोन क्षेत्र के निवासियों द्वारा बौद्धधर्म को प्राथमिकता प्रदान है। यह अपने पुर्वजों से प्राप्त हुआ एक अमूल्य रत्न के रूप में स्वीकार है।

मोन तावड़ - आज इस विशाल विश्व मॆं प्राकृतिक सौन्दर्य पर गोर किया जाए तो तावङ का नाम अवश्य ही गीने जायेंगेི। यह मैं केवल अपने मातृभूमि होने के कारण नही कह रहा हूँ। अपितु वास्तव में ही तावङ एक मनमोहक एवं अाकर्षक हैं। प्राकृतिक सुन्दरता की दृष्टि से हजारों पर्यटक इस पवित्र स्थल की एक जलक पाने हेतु दूर दूर से आकर अपने जीवन में एक अनमोल छाप छोड़ जाते हैं। लगभग सभी पर्यटकों के ह्रदय में कोई न कोई आतुर अभिलाषा होता है कि वह इस दिव्य भूमि के दर्शन पाकर अपने जीवन काल में एक अनोखा अजर अमर स्मारक बनायें। तावङ चारों अोर से बडे़ बड़े पहाड़ों से घिरी हुई हैं। मानो बलडुये रत्न के द्रव्य से देवताओं द्वारा निर्मित किये गए हों। ऐसी विचित्र दृश्य मिलकर देखने को सभी धन्य हो जाते हैं, और यहाँ हजारों लाखों प्रकार के अनेक पेड़-पौधे पाये जातें हैं। आज कल पूरे विश्व में दूषित वातावरण होने के कारण सभी लोग परेशान हैं, नए नए रोग उत्पन्न हो रहें हैं। इसके प्रभाव से सभी प्राणी शिकार बन चुके हैं। ऐसी दुर्अवस्था पर वृक्ष एक वरदान से कम नहीं, अपितु अमृत की भाँति काम करते हैं। हमारे अनगिनत वृक्ष अन्य लोगों पर भी प्रेरणा प्रदान करते हैं और जागरुग होने के संदेश भी देते हैं। पूरे दुनियाँ भर के लोग दूषित परिवेश से चिन्तित हैं। इसी वातावरण के बीच हम मोनपावासी बिना चिन्ता किये अपने जीवन का सुखपूर्वक यापन करते हैं। इतना ही नहीं हमारें यहाँ औषधि निर्माण करने हेतु जडी-बूटियाँ बहुत अधिक संख्या में पायें जातें हैं। इसलिए मैं सोचता हूँ कि मोन को औषधियों का नगर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। वृक्ष अधिक मात्रा में होने के कारण वायुमंडल भी दूषित नही हुआ है। मोन तावङ में हम जहाँ भी प्रस्थान करें, सांस ग्रहण करने में कभी कठिनता नही होती। तावङ में जल की समस्या भी बहुत कम है। बिना परिश्रम किये यह प्राप्त हो जाता है। कुल मिलाकर तावङ का वातावरण, प्रकृति, जल, वायु, स्थल आदि हमारे अनुकूल है। इससे सदा अनुकूल रहने हेतु हम मोनपा वासियों को प्रयत्नशील होना अनिवार्य हैं।

कृषि ---- मोन के ८०% लोग अपने सजीव कृषि पर आश्रित हैं और अन्य २०% लोग अध्यापक, नेता, मन्त्री, डॉक्टर, सैनिक, पुलिस इत्यादि नौकरियों पर निर्भर हैं। कुल मिलाकर हमारा मोन एक कृषि भूमि है।
हमारे मोन तावङ में अन्न उपजाऊ का उपयुक्त समय मार्च से अक्टूबर तक माना जाता है, यानि नौ महीने तक कृषि कार्य करना सबसे अच्छा मानते हैं। मार्च के प्रारम्भ से किसान कृषि कार्य में उत्साह और उमंग के साथ जुट जाते हैं। वे तरह तरह के लोक गीत गाते हुए, सभी परस्पर हाथ से हाथ मिलाकर सुख दुख आदि किसी भी प्रकार की स्थिति हो वे साथ मिलकर आगे बढ़ने की कसम खाते हुए, समस्त कृषिकार्यों को मन लगाकर लगन के साथ कार्य करते हैं। यहाँ विशेषकर जौ, बैंगन,आलू, मकई, मिर्ची, बंदगोभी, फूलगोभी आदि लगाये जाते हैं। जिनके फल तीन महीने के उपरान्त प्राप्त हो जाते हैं। तद् पश्चात पुनः बाजरा, गेहुँ, चावल इत्यादि बोते हैं। इसी प्रकार पूरे नौ महीने दिन रात खेतों का कार्य करते हुए चरम सीमा तक पहुँच जाता है।

बौद्ध धर्म--- हमारे मोन क्षेत्र के इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालें तो सदियों से ही हम बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं । इसका सबूत स्पष्ट रुप से मिल जाता है, उदाहरण के तौर पर तीर्थ स्थल। इसे एक सबसे अच्छे और सरल प्रमाण के रुप में देख सकते हैं। वैसे तो मोन तावङ तीर्थस्थलों से ओत प्रोत हैं। यहाँ कई धर्म गुरुजन पधार कर बौद्ध के महत्व को ध्यान देते हुए दुसरों के समक्ष प्रचार-प्रसार के शुभकार्य को जोर-शोर से करते थे। जिसके फलस्वरुप यह एक पवित्र धर्म भूमि के रुप में तबदील होने में सफल रहा । इनमें थाड़गाफेल, भगजंग, तगछड़ , खोमतेन,तावड़ स्थानों पर मठ इत्यादि प्रमुख हैं।
थाड़गाफेल, तगछड़ और भगजंग तीनों स्थान गुरु पद्मसम्भव से सम्बधिंत हैं। जिन्होंने बौद्ध धर्म में वज्रयान धर्म को प्रचार कराने में बहुत ज्यादा योगदान दिया। तावङ मठ के स्थापक मेरग लामा लोद्रे ज्ञछो और पाचवें दलाई लामा जी हैं। इन दोनों महापुरुषों के दूरदर्शियों के कारण तावङ मठ की स्थापना सन् १६८० के आस पास में हुई। इसी से हमारे मोन क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म को मान्यता प्राप्त होने का दावा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई धर्म गुरुजनों ने मोन भूमि को एक धार्मिक स्थल में परिवर्तित करने का सहयोग दिया। आज भी मोन तावङ के निवासी केवल बौद्ध धर्म का ही अनुचर करते हैं। उनकी दिनचर्यों में मन्त्र जपना,पूजा-पाठ करना, मठ और स्थूप आदि का परिक्रमा करना, दान देना आदि विशेष रूप से होता है। लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि हमारे मोन क्षेत्र में भोटी भाषा जानने वाले गिने चुने में ही सीमित हैं। जिसके कारण बौद्ध दर्शन के गन्थों पर चिन्तन करने में असमर्थ हैं। आज बौद्ध धर्म समझने हेतु भोटी भाषा को जाने बिना ओर कोई दुसरा विकल्प नहीं है। भोटी भाषा के महत्व को दर्शाते हुए मैं बौद्ध धर्म के अनुयायियों से इस विषय की शुभ राह पर अग्रसर होने के निवेदन के साथ अपने इस निबंध को विराम देना चाहूँगा।

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